जिसे हम ओढ़कर निकले थे आग़ाज़े जवानी में वो चादर ज़िंदगी की अब मसक जाने को कहती है मंज़िल क़रीब आते ही एक पांव कट गया चौड़ी हुई सड़क तो मेरा गांव कट गय कहानी ज़िंदगी की क्या सुनाएं अहले महफ़िल को शकर घुलती नहीं और खीर पक जाने को कहती है बुलंदियो का सफ़र भी अजीब होता है पतंग देखिए कैसे हवा में जाती है ग़ज़ल हर अहद में हमसे सलीका पूछने आई बरेली में कहां मिलता है सुरमा पूछने आई मैं जब दुनिया में था तो हाल तक मेरा नहीं पूछा मैं जब चलने लगा तो सारी दुनिया पूछने आयी बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था